युग-पुरुष महन्त दिग्विजयनाथ जी महाराज
शिक्षा के क्षेत्र में
गोरखपुर जैसे पिछड़े जनपद की जनता को केवल धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक कार्यों के द्वारा प्रगति के पथ पर लाना संभव न था। उन्हें शिक्षित तथा प्रबुद्ध करना नितान्त आवश्यक था। इसीलिए गद्दी पर बैठते ही महंत दिग्विजयनाथजी ने शिक्षा के प्रसार पर विशेष ध्यान दिया। उन्होंने सर्वप्रथम ‘गुडलक स्कूल’ के नाम से एक अंग्रेजी स्कूल की स्थापना की जो बक्शीपुर मे एक किराये के भवन में चलने लगा तथा श्री यदुनाथ चक्रवर्ती उसके प्रथम प्रधानाचार्य थे। कालांतर में इसी विद्यालय से दो विद्यालयों की स्थापना हुई। आर्य समाज मंदिर के संरक्षण में डी.ए.वी. कालेज खुला और महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के संरक्षण में महाराणा प्रताप इन्टर कालेज की स्थापना हुई। महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना कर महंतजी ने गोरखपुर के शैक्षणिक जगत् में एक क्रांति सी पैदा कर दी। इस परिषद के तत्वावधान में प्रारम्भिक शिक्षा से लेकर उच्चतम शिक्षा प्रदान करने तक की व्यवस्था हुई। प्रारम्भिक शिक्षा के लिए महाराणा प्रताप शिशु शिक्षा विहार, रामदत्तपुर में और दूसरा सिविल लाइन्स में खोला गया। हाई स्कूल और इंटरमीडिएट की शिक्षा के लिए महाराणा प्रताप इण्टर कालेज की स्थापना हुई, जो इस जनपद की प्रमुख शैक्षणिक संस्था है। इसी विद्यालय के प्रांगण में महाराणा प्रताप डिग्री कालेज की स्थापना हुई। महिलाओं के लिए अलग से महाराणा प्रताप महिला डिग्री कालेज खुला। गोरखपुर में विश्वविद्यालय की स्थापना होने पर उसकी प्रगति और उन्नति में सहयोग देने के विचार से महंतजी ने इन दोनों डिग्री कालेजों को विद्यालय भवन और उसके समस्त उपकरणों के साथ विश्वविद्यालय को दान कर दिया। गोरखपुर की किसी अन्य संस्था ने कभी भी इस प्रकार का दान नहीं किया होगा। वस्तुतः महंतजी संस्थाओं के स्वामित्व के लोभी न थे। उनका उद्देश्य महान था। वे किसी भी मूल्य पर गोरखपुर में विश्वविद्यालयी शिक्षा की व्यवस्था करना चाहते थे। इसीलिए इतनी बड़ी सम्पत्ति का दान करते हुए उन्हें तनिक भी हिचक न हुई। विश्वविद्यालय स्थापना समिति के वे वरिष्ठ उपाध्यक्ष थे। उसकी स्थापना में उन्होंने तन, मन और धन से सहयोग दिया।
ओवरी चौक में इन्हीं के नाम से दिग्विजयनाथ हाई स्कूल की स्थापना हुई। भारतीय धर्म और संस्कृति का प्राचीन पद्धति से अध्ययन करने के लिए उन्होंने मंदिर परिसर में ही श्री गोरक्षनाथ संस्कृत विद्यापीठ की स्थापना की। दिवंगत होने के कुछ दिनों पूर्व उन्होंने दिग्विजयनाथ डिग्री कालेज की स्थापना की। उन्होंने एक कृषि महाविद्यालय की स्थापना का प्रयास भी किया था। किंतु आकस्मिक रूप से इह लीला समाप्त हो जाने के कारण यह संकल्प पूर्ण न हो सका।
प्रौद्योगिक शिक्षा
पौर्वत्य एवं पाश्चात्य ढंग की महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालयी शिक्षा के साथ महंतजी प्रौद्योगिक शिक्षा की भी व्यवस्था करना चाहते थे। उन्होंने महाराणा प्रताप पालिटेकनीक इन्स्टीच्यूट की स्थापना की। पूर्ण विकसित एवं पल्लवित करके उन्होंने इसे सरकारी संरक्षण में दे दिया। उन्होंने एक इंजीनियरिंग कालेज खोलने की योजना भी बनाई थी। विश्वविद्यालय की स्थापना के साथ उसी के तत्वावधान में उन्होंने इंजीनियरींग कालेज को विकसित करने में सहयोग दिया। महंतजी ने गोरखपुर में मेडिकल कालेज खोलने का भी प्रयास किया था। उसी प्रयास के फलस्वरूप यहाँ मेडिकल कालेज खोलने की घोषणा हुई। महंतजी ने शिक्षा के विकास का बहुविध प्रयास किया। इस क्षेत्र में उनकी उपलब्धियाँ सदैव स्मरणीय रहेंगी।
गिरता स्वास्थ्य
महंतजी सन् 1963 से ही अस्वस्थ रहने लगे थे। इस समय उनकी अवस्था 70 वर्ष की थी। गोरखपुर के उच्चकोटि के डाक्टरों ने उनका इलाज किया। 1966 में आल इंडिया इंस्टीच्यूट आफ मेडिकल साइंस, नई दिल्ली में दवा कराई गयी। लोकसभा का सदस्य हो जाने पर दिल्ली में निरंतर डाक्टरों से सम्पर्क स्थापित किया। ऐसी अवस्था में भी विवादात्मक प्रश्नों पर विशेष रूप से हिन्दू हितों से सबंधित प्रश्नों पर अपने स्वास्थ्य का ध्यान न रखते हुए अपने आदर्शों को चरितार्थ करने के लिए वे निरंतर सक्रिय रहे।