मान्यताएँ:-
भारतवर्ष एक धर्म प्रधान देश है जहाँ कलियुग में भी अर्थ सत्ता पर धर्मसत्ता भारी पड़ती है। धर्मभीरू जन मानस विश्वास करता है कि भौतिक सुख प्राप्ति का साधन कर्म है, तो साध्य देवकृपा। प्रायः कार्यक्षेत्र में निष्ठापूर्वक प्रयास करने के उपरान्त भी जब मनुष्य को इच्छा अनुरूप सफलता नहीं मिलती या वह असफल होता है तब वह अपने कर्म के परिणाम को देव कृपा पर छोड़ देता है। यही विश्वास आस्था में परिवर्तित होता है। धीरे-धीरे आस्था मान्यताओं का रूप ले लेती है। महायोगी गुरु गोरक्षनाथ जी की तपःस्थली गुरु श्री गोरक्षनाथ मन्दिर से भी जुड़ी अनेक मान्यताएँ हैं। कुछ मान्यताएँ सामूहिक आधार पर हैं तो कुछ मान्यताएँ नितान्त ही व्यक्तिगत हैं। अस्तु सभी मान्यताओं को लिपिबद्ध कर पाना सम्भव नही है। परन्तु कुछ प्रचलित मान्यताओं का विवरण यहाँ पर दिया जा रहा है। भगवान गोरक्षनाथ जी का दर्शन- गोरक्षनगरी गोरखपुर में आने वाले आगन्तुकों, सैलानियों या श्रद्धालुओं में गुरु श्री गोरखनाथ मन्दिर जाकर दर्शन करने की परम्परा है। ऐसा विश्वास है कि श्रीनाथ जी के दर्शन से ही जीवन के सारे कार्य सफल हो जाते हैं। इसी क्रम में सनातन पीठ के चारो शंकराचार्य, वरिष्ठ राजनेता तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, सर्वपल्ली राधाकृष्णन, तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री, चौधरी चरण सिंह, चन्द्रशेखर, अटल बिहारी वाजपेई एवं लालकृष्ण आडवाणी, लालू प्रसाद यादव, दिग्विजय सिंह, राजनाथ सिंह, अमित शाह जी, तत्कालीन प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी सहित देश विदेश से आये तमाम जनों ने श्रीनाथ जी का दर्शन किया।
सन्तान प्राप्ति की मान्यता-
प्राचीन काल से ही ऐसी आस्था है कि निःसन्तान दम्पत्ति को गुरु गोरक्षनाथ जी की कृपा से सुयोग्य सन्तान की प्राप्ति होती है। इसके लिए कुछ इच्छार्थी भगवान गोरक्षनाथ से मनौती मानते हैं कि सन्तान प्रप्ति के पश्चात् उस सन्तान को गुरु गोरक्षनाथ को अर्पण कर देंगें। ऐसा प्रायः ऐसा देखने में आता है कि उस सन्तान के बाल्यावस्था में पहुँचने पर उनके अभिभावक गोरक्षपीठाधीश्वर या गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी से सम्पर्क कर अपनी मनौती के भाव से अवगत कराते हैं तथा सन्तान के पालन पोषण के सम्बन्ध में आदेश प्राप्त करते हैं। कुछ निःसन्तान दम्पत्ति श्री त्रिशूल भैरव जी के मन्दिर में त्रिशूल चढ़ाकर सन्तान प्राप्ति की मनोकामना करते हैं तथा लाभ प्राप्त होने के पश्चात सन्तान सहित आकर भगवान गोरक्षनाथ का दर्शन करते हैं तथा श्री भैरवनाथ जी के मन्दिर में जाकर सन्तान को रक्षा बँधवाते हैं।
वैवाहिक मान्यताएँ-
उत्तर भारत और नेपाल के हिन्दुओं में यह मान्यता बहुत प्रचलित है कि भगवान श्रीनाथ जी के मन्दिर में निर्धारित वैवाहिक सम्बन्धों पर श्रीनाथ जी की कृपा दृष्टि रहती है। ऐसे वैवाहिक सम्बन्ध सफलतापूर्वक जीवन यापन करते हैं। अतः वधू पक्ष गुरु श्री गोरक्षनाथ मन्दिर स्थित यात्री निवास में वर पक्ष से मिल कर कन्या को दिखाने की रस्म पूरा करते हैं। औपचारिकताओं के पूरा होने पर श्रीनाथ जी के दर्शन के पश्चात् शादी की तिथियाँ भी मन्दिर प्रागंण में ही निर्धारित की जाती हैं।
उपनयन संस्कार-
पुत्र एवम् पुत्रियों का मुण्डन भी निर्धारित आयु में मन्दिर परिसर में कराने की प्रथा है। ऐसा विश्वास है कि यहाँ पर मुण्डन कराने से बालकों में भगवान शिव का तथा बालिकाओं में माता पार्वती का अंश आता है तथा वे सफल एवम् सुखमय जीवन व्यतीत करते हैं।