युग-पुरुष महन्त दिग्विजयनाथ जी महाराज
चिर समाधि
सितम्बर 1969 के अन्तिम सप्ताह में महंतजी पुनः अस्वस्थ हो गये। डाक्टरों ने पूर्ण निष्ठा के साथ उनकी दवा की। 26 से 28 सितम्बर तक वे दवा के बल पर मृत्यु से जूझते रहे। अनेक बार दिल के दौरे पड़े, किन्तु उनका मस्तिष्क उस समय भी रबात सम्मेलन और मुस्लिम साम्प्रदायिकता का समाधान ढूँढने में ही लगा रहा था। 28 सितम्बर को अपराह्न में उनकी स्थिति बिगड़ने लगी और उसी दिन 5 बजकर 30 मिनट पर उन्होंने चिर समाधि ले ली।
अन्तिम दर्शन:-
महंतजी की मृत्यु का समाचार विद्युत गति से चहुँ ओर फैल गया। अंतिम दर्शन की आकांक्षा से बड़ी संख्या में लोग गोरखनाथ मंदिर के प्रांगण में एकत्र होने लगे। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए स्वर्गीय महंतजी के पार्थिव शरीर को 24 घन्टे के लिए गोरखनाथ मंदिर के प्रांगण में दर्शनार्थ रखा गया। दूसरे दिन लगभग 15 लाख व्यक्तियों ने उस महामानव के दर्शन किये और उनके प्रति अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित किये।
देश के कोने-कोने से लोग दर्शनार्थ दूसरे दिन तक गोरखपुर में उपस्थित हो गये। संवेदना के तारों और पत्रों की तो कोई गिनती ही नहीं थी। भारत के लगभग समस्त समाचार पत्रों ने उनकी मृत्यु के समाचारों को प्रथम पृष्ठ पर स्थान दिया और अपने अग्रलेखों के द्वारा उन्हें श्रद्धांजलियाँ अर्पित की। वस्तुतः महंतजी की मृत्यु इस देश के लिए एक राष्ट्रीय घटना थी। श्री महंतजी हिन्दुओं के लिए आधुनिक युग के महाराणा प्रताप थे। उनमें ब्रह्मबल और क्षात्रबल का अद्भुत समन्वय था। उनकी स्मृतियाँ यावत् चन्द्रदिवाकारौंसदृश जन-मानस पर छाईं रहेंगी।