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राष्ट्र सन्त महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज

महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज सामाजिक समरसता के प्रश्न पर सदैव स्पष्टवादी रहे। उन्होंने इस प्रश्न पर धर्माचार्यों, संत-महात्माओं, राजनीतिज्ञों, किसी को भी क्षमा नहीं किया, यदि वे हिन्दू समाज की एकता के विरुद्ध अथवा अस्पृश्यता के पक्ष में खड़े हुए।

महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज एकबार अपने प्रिय एवं पुरी के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द जी सरस्वती के खिलाफ भी तब तनकर खड़े हो गये जब उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय परिसर में आयोजित समारोह में एक विदुषी महिला को वेदपाठ करने पर रोक दिया। महन्त जी ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि यह कृत्य कहीं से भी न तो न्यायसंगत है और न ही धर्मानुसार उचित है। यह कृत्य महिला समाज का अपमान करता ही है इससे हिन्दुत्व भी लांछित होता है। कोई भी समझदार व्यक्ति ऐसे कृत्य का समर्थन नहीं कर सकता। आज जबकि जातिवाद, ऊँच-नीच, छूत-अछूत आदि विकृतियों को शह देकर हिन्दू समाज को बाँटने एवं कमजोर करने का षड्यन्त्र चल रहा है, जगद्गुरु शंकराचार्य द्वारा महिलाओं के वेदपाठ पर आपत्ति न तो धर्मानुकूल है और न ही युगानुकूल।

महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज ने अपने जीवन का उत्तरार्द्ध पूर्णतः सामाजिक समरसता, हिन्दू समाज के पुनर्जागरण और श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति अभियान को समर्पित कर दिया। उन्होंने 1980 के बाद से ही हिन्दू समाज से अस्पृश्यता उन्मूलन एवं श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मन्दिर निर्माण को अपने जीवन का मिशन बना लिया और जीवन के अन्त तक महाराज जी के बातचीत के केन्द्र बिन्दु यही दो मुद्दे रहे।

श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन के नायक

आधुनिक भारत में क्षेत्र और जनसहभागिता के आधार पर 1857 और आपातकाल के विरुद्ध हुए जनान्दोलनों से भी बड़ा या यह कहें कि अब तक के सबसे बड़े उस जनान्दोलन का, जिसने भारत की दिशा बदल दी, नेतृत्व गोरक्षपीठाधीश्वर ब्रह्मलीन महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज ने ही किया। पांथिक विविधता और मतभिन्नता से युक्त हिन्दू समाज के धर्माचार्यों में जिस एक नाम पर सहमति थी वह गोरक्षपीठाधीश्वर का ही नाम था। शैव, वैष्णव, शाक्त, बौद्ध, जैन, सिख, विविध अखाड़ों सहित बड़ी संख्या के मतावलम्बी धर्माचार्य महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज के प्रति समान श्रद्धा एवं निष्ठा रखते हैं। हिन्दू समाज में अस्पृश्यता एवं ऊँच-नीच जैसी कुप्रथाओं के खिलाफ देश भर में जन-जागरण अभियान पर निकलकर गोरक्षपीठाधीश्वर महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज ने सर्वप्रथम धर्माचार्यों के बीच अपने-अपने मत-श्रेष्ठतावाद का खण्डन किया और भारत के लगभग सभी शैव-वैष्णव इत्यादि धर्माचार्यों को एक मंच पर खड़ा किया था। परिणामतः जब श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ-समिति का गठन हुआ तो 21 जुलाई, 1984 को अयोध्या के वाल्मीकि भवन में सर्वसम्मति से महन्त जी को अध्यक्ष चुना गया। तब से आजीवन श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज अध्यक्ष रहे और उनके नेतृत्व में भारत में ऐसे जनान्दोलन का उदय हुआ जिसने भारत में सामाजिक-राजनीतिक क्रान्ति का सूत्रपात किया। विकृत धर्मनिरपेक्षता एवं मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति का काला चेहरा उजागर हुआ। हिन्दुत्व पर नये सिरे से दुनियाभर में बहस शुरू हुई। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की आन्तरिक ताकत का एहसास हुआ। भारत सहित दुनिया के इतिहास में श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन और उसके प्रभाव एवं परिणाम का अध्याय महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज का उल्लेख हुए बिना अधूरा रहेगा।

श्रीराम जन्मभूमि की मुक्ति और उस स्थान पर भव्य मन्दिर निर्माण के लिए महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज के नेतृत्व में अत्यन्त योजनापूर्वक जनान्दोलन की रूपरेखा बनी और 1984 से प्रारम्भ किये गये इस चरण का आन्दोलन एक हद तक परिणाम पर पहुँचा और उस स्थान पर स्थित विदेशी आक्रान्ता द्वारा निर्मित हिन्दू समाज को चिढ़ाने और अपमानित करने वाला ‘ढाँचा’ ध्वस्त कर दिया गया तथा श्रीराम जन्मभूमि पर कारसेवकों ने भगवान् श्रीराम का ‘मन्दिर’ अपने हाथों से बना दिया। अब उस मन्दिर को ‘भव्यतम’ बनाने का कार्य ही मात्र शेष है। लगभग पाँच शताब्दियों से चल रहे संघर्ष को अन्ततः पूज्य महन्त जी के नेतृत्व में एक बड़ी सफलता प्राप्त हुई। महन्त जी ने 1984 के बाद से श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति द्वारा चलाये गये जन-संघर्ष का सफलतम नेतृत्व किया।

महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज के नेतृत्व में लगभग दो दशक तक अनवरत चले श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन ने न केवल श्रीराम जन्मभूमि पर हिन्दू समाज को अपमानित करते हुए चिढ़ाने वाला ढाँचा ध्वस्त हुआ अपितु आजाद भारत में हिन्दू विरोधी राजनीति का ढाँचा भी टूटा। भारत सहित दुनिया भर में ‘हिन्दुत्व’ बहस का मुद्दा बना और हिन्दुत्व पुनर्जागरण के एक ...