राष्ट्र सन्त महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज
1980 से गाँवों में लगातार महन्त जी के जनसम्पर्क एवं तथाकथित अछूतों के साथ बैठकर सहभोज ने क्रान्ति पैदा कर दी और सामाजिक परिवर्तन की आँधी में जिस तेजी से समाज बदला वह सभी ने देखा। इस दृष्टि से काशी में डोमराजा के घर पर महन्त जी की अगुवाई में धर्माचार्यों द्वारा किये गये भोजन का देश भर में स्वागत हुआ। दैनिक समाचार पत्र ‘आज’ ने लिखा-सदियों से बिखरी पड़ी हिन्दू एकता की सभी कड़ियों को परस्पर मजबूती से जोड़कर सशक्त हिन्दू समाज का पुनर्निर्माण करने के उद्देश्य से छुआछूत मिटाने के प्रयासों को ठोस आधार प्रदान करते हुए गोरक्षपीठाधीश्वर तथा सांसद महन्त अवेद्यनाथ ने अनेक प्रमुख सन्त महात्माओं के साथ गुरुवार (18 मार्च, 1994) को प्रातःकाल काशी के डोमराजा सुजीत चौधरी के घर उनकी माँ के हाथों भोजन कर अस्पृश्यता की धारणा पर जोरदार चोट की। मान मन्दिर स्थित डोमराजा के आवास पर उनके वंशज श्री संजीत चौधरी की देखरेख में सूर्योंदय के पूर्व से संतों के स्वागत तथा उन्हें भोजन कराने की तैयारियाँ शुरू हो गयी थीं। आसपास के लोगों ने जब यह सुना कि कुछ ही देर बाद अनेक संत-महात्मा डोमराजा के यहाँ भोजन करने आ रहे हैं तो किसी को विश्वास नहीं हो रहा था। लेकिन नौ बजे के लगभग जब दशाश्वमेध घाट से डोमराजा के आवास की ओर जाने वाली गली में गोरक्षपीठाधीश्वर महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज के नेतृत्व में धर्माचार्यों के काफिले ने प्रवेश किया तो सभी नागरिक अभिभूत हो उठे। सदियों तक चाण्डाल कहकर पुकारे गये, समाज की मुख्य धारा से अलग अस्पृश्य माने गये इस परिवार के यहाँ देश के वरिष्ठ सन्तों के भोजन का यह दृश्य देखने जनता उमड़ पड़ी। अस्पृश्यता की जड़ अवधारणा पर निर्णायक प्रहार का ऐसा मार्मिक दृश्य देखकर लोगों के नेत्र आनन्दातिरेक से छलछला उठे। संजीत चौधरी की माँ श्रीमती सारंग देवी भोजन कराते-कराते इस कदर भाव-विह्वल हो गयी थीं कि उनकी आँखों से झर-झर अश्रुपात होने लगा। एक पत्रकार ने उनसे पूछा कि आप क्यों रो रही हैं? उनका उत्तर था- ‘‘आज संजीत क बाऊ होतन तऽ केतना खुश होतन।’’ भोजन के बाद परम्परानुसार संजीत चौधरी की माँ ने संतों को दक्षिणा देने का प्रयास किया तो महन्त अवेद्यनाथ ने उन्हें रोका और फिर सन्तों से उन्होंने कहा कि कोई दक्षिणा नहीं लेगा अन्यथा कल ही अखबार वाले छाप देंगे ये सन्त-महात्मा दक्षिणा के लिए ही भोजन करने आये थे। भोजनोपरान्त महन्त अवेद्यनाथ ने डोमराजा के घर में बने रामजानकी मन्दिर के समक्ष सिर नवाया। अन्य सन्तों ने भी उनका अनुकरण किया। बाद में जब एक पत्रकार ने महन्त अवेद्यनाथ से पूछा कि डोमराजा के घर भोजन कर आपको कैसा लगा? उनका उत्तर था- ‘‘गंगा के तट पर डोमराजा के घर भोजन कर मैं धन्य हुआ हूँ। क्योंकि सदियों से भारतीय समाज में कोढ़ की तरह जड़ हो चुके छुआछूत को मेरे साथ देश के धर्माचार्यों ने एक बार फिर शास्त्र विरुद्ध घोषित कर हिन्दू समाज की एकता का मार्ग प्रशस्त किया है।’’ महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज द्वारा चलाये गये सामाजिक समरसता के अभियान का यह चरमोत्कर्ष था।
महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज ने इससे पूर्व श्रीराम जन्मभूमि पर बनने वाले भव्यतम मन्दिर का शिलान्यास हिन्दू समाज में घोषित किसी अछूत से कराने का प्रस्ताव कर दुनिया को यह संदेश दे दिया कि हिन्दू धर्माचार्य और हिन्दू समाज अपनी सामाजिक विकृतियों को समाप्त करने हेतु संकल्पबद्ध हो रहा है। परिणामतः दुनिया ने देखा कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की जन्मभूमि पर बनने वाले पवित्र एवं विशाल मन्दिर की पहली ईंट एक दलित ने रखी। महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज के प्रयास से श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर का शिलान्यास लाखों श्रीराम भक्त हिन्दू जनता तथा परम्परा और रूढ़ियों को तोड़ने हेतु कृत संकल्पित भारत के विभिन्न हिस्सों से आये विविध पंथों के संत-महात्माओं की उपस्थिति में एक तथाकथित अस्पृश्य द्वारा किया जाना भारत के सामाजिक-धार्मिक इतिहास में सामाजिक परिवर्तन की क्रान्ति का सूत्रपात था। श्रीराम जन्मभूमि पर मन्दिर निर्माण का प्रश्न हिन्दू समाज और भारतीयता की प्रतिष्ठा का प्रश्न था ही, इस मुद्दे ने भारत की राजनीतिक सत्ता के उथल-पुथल का जो दृश्य प्रस्तुत किया उस पर सारी दुनिया की निगाहें टिकी थीं। ऐसे महत्त्वपूर्ण आयोजन पर हिन्दू समाज में व्याप्त अस्पृश्यता जैसे कोढ़ के खिलाफ यह प्रतीकात्मक पहल दुनिया को संदेश देने के साथ-साथ हिन्दू समाज को यह संदेश देने का माध्यम बना कि छुआछूत न तो शास्त्र-सम्मत है, न ही धर्म सम्मत। यह एक विकृति है, रूढ़ि है जिसे धर्माचार्यों, सन्त-महात्माओं एवं हिन्दू समाज ने पूर्णतः खारिज कर दिया है।
महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज द्वारा सामाजिक समरसता हेतु किये गये भगीरथ प्रयासों का संकलन और उनका उल्लेख तो सम्भव नहीं है किन्तु पटना के महावीर मन्दिर में दलित (हरिजन) पुजारी की प्रतिष्ठा के प्रयास का इतिहास में हमेशा उल्लेख किया जाता रहेगा। बिहार जब जातिवादी-साम्प्रदायिक राजनीति के सर्वोच्च शिखर पर था; श्री लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व में सत्ता पर काबिज रहने के लिए जातिवाद के विषबेलि को पूर्णतः खाद-पानी प्राप्त हो रहा था; बिहार एक प्रकार से जल रहा था, महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज ने इस जातिवादी राजनीति के सीने पर चढ़कर बिहार की राजधानी पटना में स्थित महावीर मन्दिर में सूर्यवंशी लाल उर्फ फलाहारी बाबा (हरिजन) को पुजारी नियुक्त कर एक बार फिर भारत की सामाजिक विखण्डनकारी राजनीति को आईना दिखा दिया। समारोह के साथ पुजारी नियुक्त किया गया। इस समारोह में महन्त जी के साथ स्वामी चिन्मयानन्द जी महाराज भी उपस्थित हुए। महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज के इस युग-परिवर्तनकारी प्रयास को दुनिया भर में सराहा गया।