राष्ट्र सन्त महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज
लोकसभा में सम्मानित सदस्य होते हुए महन्त जी 1971, 1990 एवं 1991 में भारत सरकार के गृहमंत्रालय की परामर्शदात्री समिति के सदस्य रहे। राजनीति में भी महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज की अपराजेयता सभी ने स्वीकारी। 1996 के चुनाव के समय दैनिक समाचार पत्र ‘राष्ट्रीय सहारा’ ने अपनी टिप्पणी में लिखा- मौजूदा सांसद अवेद्यनाथ सुप्रसिद्ध गोरखनाथ मन्दिर के पीठाधीश्वर हैं। वह जितने बड़े सन्त हैं उतने ही बड़े राजनेता भी हैं। इस मण्डल में वह इकलौते शख्स हैं जिन्होंने पाँच बार विधानसभा और तीन बार लोकसभा का चुनाव जीता है। वह 1962 में पहली बार विधायक बने। हिन्दू महासभा से 1967, 1969, 1974 और 1977 में विधायक चुने गये। स्पष्ट है कि किसी का राज, किसी का प्रभाव, किसी की लहर उनकी जीत को न रोक सकी। यहाँ तक कि जनता लहर में भी वह अपराजेय रहे। 1998 ई. के लोकसभा चुनाव में उन्होंने अपने शिष्य एवं उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ जी महाराज को चुनाव लड़ने का निर्देश दिया। 1998 से अद्यतन गोरखपुर की संसदीय सीट पर गोरक्षपीठाधीश्वर महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज की कृपा एवं आशीर्वाद से पूज्य योगी आदित्यनाथ जी महाराज अपराजेय धर्मयोद्धा की प्रतिष्ठा प्राप्त कर चुके हैं। महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज ने सदैव राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद एवं भारतीय संस्कृति की पुनर्प्रतिष्ठा तथा हिन्दू समाज की रक्षा में अपनी राजनीतिक भूमिका निर्धारित की।
सामाजिक समरसता के अग्रदूत
गोरक्षपीठ हिन्दू समाज की विकृतियों के खिलाफ जन-जागरूकता एवं हिन्दू समाज को सामाजिक-राजनीतिक-आध्यात्मिक नेतृत्व देने के लिए ही सदा से प्रतिष्ठित रहा है। नाथपंथ का अभ्युदय ही हिन्दू तंत्र-साधना में पंचमकार के शमन के साथ दिखाई देता है। तथापि बीसवीं शताब्दी के तीसरे दशक से गोरक्षपीठाधीश्वर महन्त दिग्विजयनाथ जी महाराज के नेतृत्व में गोरक्षपीठ ने सामाजिक परिवर्तन की जो मशाल प्रज्वलित की वह महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज द्वारा देश भर में चलाये गये छुआछूत विरोधी अभियानों से पूर्णतः देदीप्यमान हो गयी। हम लोग पूज्य महन्त जी को 1987 ई. से लगातार सुनते आ रहे हैं। कोई मंच हो, कोई विषय हो; किन्तु महाराज जी के उद्बोधन में हिन्दू समाज की एकता और छुआछूत समाप्त करने की अपील किसी न किसी रूप में आ ही जाती थी। यद्यपि कि महन्त जी द्वारा छुआछूत विरोधी एवं हिन्दू समाज में सामाजिक समरसता का प्रयास तो गोरक्षपीठ से प्राप्त वैचारिक उत्तराधिकार के रूप में प्रारम्भ से ही चलता रहा, किन्तु 1980 ई. में मीनाक्षीपुरम् और उसके आस-पास के क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर कराये गये धर्म परिवर्तन ने महाराज जी को अन्दर से हिला दिया। वे व्यथित हुए और मात्र दुःखी होकर पीड़ा सहकर चुप बैठने के बजाय राजनीति से संन्यास लेकर हिन्दू समाज की एकता और सामाजिक समरसता के यज्ञाभियान पर निकल पड़े।
महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज को जिस राष्ट्र विरोधी एवं गैर संवैधानिक सामूहिक धर्मान्तरण ने विचलित कर दिया वह 19 फरवरी, 1980 को घटित मीनाक्षीपुरम् की घटना है। मीनाक्षीपुरम् का नाम बदलकर ‘रहमत नगर’ कर दिया गया। बड़े धूम-धाम से आयोजित इस धर्मान्तरण समारोह में आसपास के तेनाक्षी, कडयनल्लुर, वदकरी व वनगरम् आदि गाँवों के मुसलमान अपने-अपने परिवारों के साथ सम्मिलित हुए। कडयनल्लुर के विधायक श्री सहुल हमीद ने भी सक्रिय भागीदारी निभायी। इस समारोह में एक सौ अस्सी हिन्दू परिवारों (हरिजन) को धर्मान्तरित कर उस दिन एक बजे, साढ़े चार बजे, साढ़े छः बजे जुहर, अझर एवं मकुआरिब हुआ और साथ ही सारा समुदाय कलमा पढ़ता रहा।
मीनाक्षीपुरम् के धर्मान्तण समारोह से प्रारम्भ यह धर्मान्तरण अभियान आसपास के क्षेत्रों में लगभग एक वर्ष तक चलता रहा, किन्तु मीनाक्षीपुरम् धर्मान्तरण का पूरे देश में विरोध शुरू हो गया। पूज्य महंत अवेद्यनाथ जी महाराज ने धर्मान्तरण के विरोध में अत्यन्त कठोर शब्दों में अपनी आपत्ति दर्ज कराते हुए दुहराया कि यह धर्मान्तरण नहीं राष्ट्रान्तरण के अभियान की शुरुआत है। किन्तु महन्त जी मात्र अपनी आपत्ति दर्ज कराकर चुप नहीं हुए। उन्होंने कहा कि -‘‘मुझे यह लगा कि उस मूल कारण पर चोट होनी चाहिए कि जिससे हमारे ही बन्धु-बान्धव हजारों वर्षों की अपनी परम्परा, धर्म और उपासना पद्धति बदलने के लिए तैयार हो जा रहे हैं और मैंने महसूस किया कि जब तक हिन्दू समाज में अस्पृश्यता का कोढ़ बना रहेगा, अपने ही समाज में उपेक्षित और तिरस्कृत बन्धुओं को कोई भी गुमराह कर धर्मान्तरण हेतु प्रोत्साहित और प्रेरित कर सकता है। अतः मैं गाँव-गाँव जाकर छुआछूत के विरुद्ध अभियान छेड़ने का निश्चय लेकर निकल पड़ा। इसी समय मेरे मन में यह बात आयी कि मेरे इस सामाजिक समरसता अभियान पर लोग यह न सोचें कि यह साधु वोट के लिए ऐसा कर रहा है, मैंने राजनीति को तिलांजलि दे दी और चुनाव न लड़ने का निर्णय घोषित कर दिया।’’