युग-पुरुष महन्त दिग्विजयनाथ जी महाराज
फिर उन्होंने स्थानीय हाई स्कूल में प्रवेश लिया, जो आजकल महात्मा गांधी इण्टर कालेज के नाम से प्रतिष्ठित है। सेन्टएण्ड्रयूज कालेज में उन्होंने इण्टरमीडिएट में प्रवेश लिया । सन् 1920 ई0 में राष्ट्रीय आन्दोलन से प्रभावित होकर उन्होंने विद्यालय का परित्याग कर दिया और वे सक्रिय रूप से देश के स्वतंत्रता आंदोलन में सम्मिलित हो गये।
बालक नान्हू सिंह सदा एक औसत छात्र रहे। किन्तु विद्यालय के पाठ्यक्रमेतर कार्यक्रमों में वे सर्वदा सर्वाधिक उत्साह से भाग लेते थे। सभा-सोसाइटी तथा व्याख्यान आदि का आयोजन करने और उनमें सोत्साह भाग लेने, छात्रों को संगठित करने तथा विभिन्न प्रकार की क्रीड़ाओं की व्यवस्था करने में वे अत्यन्त कुशल थे। नेतृत्व, निर्भीकता, स्वाभिमान, अनुशासनप्रियता, प्रत्युत्पन्नमतित्व और कार्यकुशलता उनके जीवन के प्रधान गुण थे। छात्र-जीवन में बीज-रूप में अंकुरित ये गुण उनके भावी जीवन में पूर्णतया पल्लवित और पुष्पित हुए। इन्हीं गुणों के बल पर बालक नान्हू सिंह ने आगे चलकर दिग्विजयनाथ के अभिधान को सार्थक करते हुए जीवन के समस्त धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक क्षेत्रों को अपनी स्वतःसम्भूत प्रखर बौद्धिकता से भली-भाँति आलोकित किया।
क्रीड़ा के क्षेत्र में:-
छात्र-जीवन में वे हॉकी के श्रेष्ठ खिलाड़ी थे। मैदान में उतरने के पश्चात वे अपने व्यक्तित्व, व्यवहार और कौशल के कारण समूचे जनसमूह पर छा जाते थे। दर्शकों की दृष्टि निरन्तर उनका ही अनुगमन करती रहती थी। वे सेन्टर फारवर्ड और राइट आउट दोनों स्थानों से समान कुशलता के साथ खेल लेते थे। खेल के प्रति उन्हें इतना मोह था कि बाद के जीवन में भी वे जब कभी संध्या के समय महाराणा प्रताप कालेज की ओर निकल आते और बच्चों को हॉकी खेलते देख लेते तो वे खेलने का लोभ संवरण नहीं कर पाते थे। छात्र-जीवन समाप्त करने के बाद भी वे सेन्टऐन्ड्रयूज कालेज में बराबर हॉकी खेलने जाया करते थे। इसके अतिरिक्त बैडमिंटन और टेनिस में भी उनकी अधिक रुचि थी। इन दोनों खेलों की व्यवस्था उन्होंने मंदिर पर भी कर रखी थी। उनके साथ टेनिस खेलने वाले लोग आज भी मुक्त कण्ठ से उनकी प्रंशसा करते हैं। घुड़सवारी तो उनके नित्य जीवन का एक अंग था ही।
हिन्दू धर्म और संस्कृति से प्रेमः-
विद्यार्थी जीवन में ही राणा नान्हू सिंह के हृदय में हिन्दू जाति, हिन्दू धर्म और हिन्दू संस्कृति के प्रति पूरी आस्था थी । योगिराज गम्भीरनाथ जी के चरणों में बैठकर उन्होंने सर्वप्रथम हिन्दू संस्कृति के मूल तत्वों को पहचानने का प्रयास किया । विद्यार्थी जीवन की धर्म-प्रेम सम्बन्धी कुछ घटनाएँ अविस्मरणीय हैं।
राणा नान्हू सिंह (महंत दिग्विजयनाथजी) आठवीं कक्षा के छात्र थे। उस समय वर्तमान राजकीय टेक्निकल स्कूल के निकट बने एक छोटे शिव मंदिर को लेकर एक विवाद खड़ा हो गया टेक्निकल स्कूल के पास की भूमि रेलवे कर्मचारियों के आवास के लिए अधिगृहीत की जा रही थी। उसी भू-भाग में एक लुहार द्वारा निर्मित शिव मंदिर सार्वजनिक उपासना का केन्द्र बन चुका था। जब उसे गिरवाने का प्रयास किया जाने लगा तो राणा नान्हू सिंह के नेतृत्व में विद्यार्थियों के एक विशाल समूह ने रेलवे के तत्कालीन चीफ इंजीनियर ममी साहब का बंगला घेर लिया। उस समय छात्रों के साथ नृसिंह प्रसाद एडवोकेट भी थे। छात्रों के विशाल परेड का नेतृत्व करने के कारण राणा नान्हू सिंह और स्थानीय रईस बाबू पुरुषोत्तमदास जी को पकड़कर हवालात में डाल दिया गया। बाद में समझौता हुआ और मंदिर गिरने से बच गया।
सन् 1918 में जब वे कक्षा 9 के छात्र थे, उस समय गोरखनाथ मंदिर के अहाते में ईसाई मत-प्रचारक कैम्प लगाकर अपने मत का प्रचार कर रहे थे। कई वर्षों से वे यह कार्य करते आ रहे थे। एक हिन्दू मदिर के प्रांगण मे हिन्दू धर्म के ही विरुद्ध प्रचार किया जाए, इसे राणा नान्हू सिंह सहन न कर सके। विद्यार्थियों का एक विशाल समूह लेकर उन्होंने ईसाई मत प्रचारक कैम्पों पर आक्रमण कर दिया। कैम्प उजाड़ डाले गये। ईसाई धर्म की पुस्तकों को पोखरे में जल-समाधि दे दी गई। इसके बाद कभी किसी ईसाई प्रचारक का मंदिर के पावन प्रांगण में जाने का साहस न हुआ।